28 मार्च 2013

'मौत का त्रिकोण'

संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी के बीच फैली जगह, जोकि एक काल्पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोण अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है।
इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, पुतौरिका को स्पर्श करते हैं। वर्ष 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाऍं/दुर्घटनाऍं घटित होती रही हैं कि इसे 'मौत के त्रिकोण' के नाम से जाना जाता है।
बरमूडा त्रिकोण पहली बार विश्व स्तर पर उस समय चर्चा में आया, जब 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में इस पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इस पर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गई।
बरमूडा त्रिकोण की सबसे विख्यात दुर्घटना 5 सितम्बर 1945 में हुई, जिसमें पॉंच तारपीडो यान नष्ट हो गये थे। उन उड़ानों का नेतृत्व कर रहे चालक ने दुर्घटना होने के पहले अपना संदेश देते हुए कहा था- हम नहीं जानते कि पश्चिम किस दिशा में है। सब कुछ गलत हो गया है। हमें कोई भी दिशा समझ में नहीं आ रही है। हमें अपने अड्डे से 225 मील उत्तर पूर्व में होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि !
और उसके बाद आवाज आनी बंद हो गई। उन यानों का पता लगाने के लिए तुरंत ही मैरिनर फ्लाइंग बोट भेजी गई थी, जिसमें 13 लाग सवार थे। लेकिन वह बोट भी कहँ गई, इसका भी पता नहीं चला।
इस तरह की तमाम घटनाएँ उस क्षेत्र में होने का दावा समय समय पर किया जाता रहा है। लेकिन यह सब किन कारणों से हो रहा है, यह कोई भी बताने में अस्मर्थ रहा है। इस सम्बंध में चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्तक के द्वारा इस रहस्य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्ट्री साल्व्ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नही। बॉम्बर जहाजों के पायलट अनुभवी नहीं थे। चार्ल्स के अनुसार वे सभी चालक उस क्षेत्र से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे और सम्भवत: उनके दिशा सूचक यंत्र में खराबी होने के कारण खराब मौसम में एक दूसरे से टकरा कर नष्ट हो गये।
बहरहाल समय-समय पर इस तरह के ताम दावे इस त्रिकोण के रहस्य को सुलझाने के किए जाते रहे हैं। कुछ रसायन शास्त्रियों क मत है कि उस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। यदि इसका क्षेत्रफल काफी बड़ा हो, तो यह बड़े से बड़े जहाज को डुबो भी सकता है।
वैज्ञानिकों का मत है कि हाइड्राइट के विस्फोट के कारण डूबा हुआ जहाज जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहाँ पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। यही कारण है कि इस तरह से गायब हुए जहाजों का बाद में कोई पता-निशां नहीं मिलता। इस क्षेत्र में होने वाले वायुयानों की दुर्घटना के सम्बंध में वैज्ञानिकों का मत है कि इसी प्रकार जब मीथेन बड़ी मात्रा में वायुमण्डल में फैलती है, तो उसके क्षेत्र में आने वाले यान का मीथेन की सांद्रता के कारण इंजन में ऑक्सीजन का अभाव हो जाने से वह बंद हो जाता है। ऐसी दशा में विमान पर चालक का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और वह समुद्र के पेट में समा जाता है। अमेरिकी भौगोलिक सवेक्षण के अनुसार बरमूडा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकूत भण्डार भरा हुआ है। यही वजह है कि वहाँ पर जब-तब इस तरह की दुर्घटनाएँ होती रहती हैं।
बहरहाल इस तर्क से भी सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं। यही कारण है कि बरमूडा त्रिकोण अभी भी एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य से कभी पूरी तरह से पर्दा हटेगा, यह कहना मुश्किल है।

बरमूडा त्रिकोण क्षेत्र में जमीन पर हुई घटनाएं
  1. सन् 1969 में बिमिनी, बाहामास स्थित ग्रेट आइजैक लाइटहाउस पर कार्यरत दो कर्मचारी अचानक लापता हो गये और फिर कभी नहीं मिले।
 बरमूडा त्रिकोण की समुद्री घटनाएं
  1. 4 मार्च 1918: पानी में चलनेवाला अमेरिकी जहाज साइक्लॉप्स, 309 लोगों के साथ गायब हो गया।
  2. 1 दिसंबर 1925: चाल्र्सटन, दक्षिण कैरोलीना से हवाना, क्यूबा के लिए चलने के बाद पानी के जहाज सोटोपैक्सी ने रेडियो सिगल पर संदेश जारी किया कि जहाज डूब रहा है। उसके बाद जहाज की कोई खबर नहीं मिली।
  3. 23 नवंबर 1941: अमेरिकी जहाज प्रोटिअस, 58 लोगों के साथ वर्जिन आइलैंड के लिए चला. इस पर बॉक्साइट लदा हुआ था। दो दिनों बाद इसका कोई पता नहीं चला। इसके अगले महीने उसी कंपनी का दूसरा जहाज नेरेअस 61 लोगों के साथ उसी क्षेत्र के आसपास से लापता हो गया।
  4. 2 फरवरी 1963: सल्फर क्वीन नामक जहाज 15 हजार दो सौ 60 टन सल्फर के साथ ब्यूमोंट, टेक्सास के लिए चला। इस पर चालक दल के 39 सदस्यसवार थे। 4 फरवरी को प्राप्त रेडियो सिग्नलों के अनुसार, यह तेज समुद्री आंधी में फंस गया और इसके दो दिन बाद इसकी कोई खोज-खबर नहीं मिली।
बरमूडा त्रिकोण की वायुयान दुर्घटनाएं
  1. 5 दिसंबर 1945: फ्लाइट 19 में सवार 14 वायु सैनिकों का एक दल लापता हुआ, उसी दिन उसकी तलाश में 13 सदस्यों के साथ निकला पीबीएम मरीनर भी लापता हुआ।
  2. 30 जनवरी 1948: स्टार टाइगर नामक हवाई जहाज चालक दल के छह सदस्यों और 25 यात्रियों के साथ लापता हो गया।
  3. 28 दिसंबर 1948: डगलस डीसी-3 हवाई जहाज चालक दल के तीन सदस्यों और 36 यात्रियों के साथ लापता हुआ।
  4. 17 जनवरी 1949: स्टार एरियल वायुयान चालक दल के सात सदस्यों और 13 यात्रियों के साथ लापता हो गया।

प्रेम दिवानी नागिन

यह न तो किसी फिल्म की कहानी है और न ही कोई किस्सा। लेकिन जिस किसी ने इस अजीब दास्तान को सुना वही इसे देखने के लिए भागा चला आया। जहां मायावादी जमाने में आदमी ही आदमी का दुश्मन है वहीं जानवरों व पशु पक्षियों में एक दूसरे के लिए स्नेह भरा हुआ है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण इस मामले में नजर आ रहा है। नाग और नागिन की इस प्रेम कहानी को जिसने भी अपनी आंखों से देखा तो विश्वास नहीं कर सका। ड्रेन के गड्ढे में दो फुट का नाग मरा पड़ा था और उसके मृत शरीर से लिपटी थी नागिन। वह दो दिन से नाग की देह के पास उसकी मौत पर विलाप कर रही है। मिट्टी के रंग की नागिन नाग के शरीर के पास फन फैला कर बैठ गई। वह कभी वहां चक्कर लगाती तो कभी उसके शरीर से लिपट जाती। जब नाग को छेड़ा जाता तो वह फन उठा कर विरोध जताती। जिसने भी इस घटना को सुना वह मौके पर पहुंच गया। देखते ही देखते वहां महिलाओं की भीड़ जुटने लगी। लोगों का प्रयास था कि नागिन को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे और वह पास के जंगल में चली जाए। इसके बाद में वे मृत नाग को दफन कर देंगे। लेकिन अगर अब वे नागिन के रहते ओअह नाग को हटाते हैं तो नागिन उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है। 

यह घटना पंजाब में कैथल की है। पहली नजर में देखने पर लगता है कि दो सांप मरे पड़े हैं। नाग की लाश पर नागिन इस तरह चिपकी हुई कि उसके जिंदा रहने का एहसास नहीं हो रहा था। जब नाग को हिलाया गया तो नागिन ने गुस्से में अपना फन उठाया। इसके बाद वह नाग के चारों तरफ चक्कर लगा कर फिर उसी जगह आकर नाग के शरीर से लिपट गई। जब लोगों ने ये घटना देखा तो किताबों में पढ़ा व सुना अंधविश्वास फिर से जन्म लेने लगा। शनिवार को रूपनगर के रहने वाले एक युवक ने बताया कि किसी ने नाग को मार कर वहां फेंक दिया था। उसने पास में ही गड्ढा खोद कर उसे दफनाने का सोची। अमित कुमार, रणधीर व नरेश कुमार ने बताया कि नवरात्रों में नाग के इस तरह पड़े रहने को अशुभ समझा जाता है। गड्ढा खोदने के बाद लाठी से जैसे ही वे मृतक नाग को उठाने लगे तो उन्हें उसकी देह से लिपटी नागिन का अहसास हुआ। नाग को हिलाने से उसने क्रोध में फन उठाया तो युवक पीछे हट गए।

इस विषय में एक जीव विज्ञान प्रोफेसर का मत है कि नाग ऋतु क्रिया के समय गंध निकालते हैं। नागिन नाग से गंध मिलने के बाद उससे मेल करने के लिए नाग की खोज में चल पड़ती है। इसी बीच किसी ने नाग को मार दिया। जब वह उसके पास पहुंची तो प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। नाग मर चुका है वह कोई हरकत नहीं करेगा। नागिन को जब गंध मिलनी बंद हो जाएगी तो वह अपने आप चली जाएगी। इस मौसम में नाग शीत निद्रा में जाने के प्रयास में होते है। आमतौर पर नाग वर्षा ऋतु में ही प्रजनन करते हैं। लेकिन कभी-कभी शीत ऋतु से पहले भी नाग क्रिया करते हैं।
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आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खुल्लमखुल्ला खेल

आज जहां वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति वाले कण की खोज कर भगवान के करीब पहुंच चुके हैं, वहीं पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकि नगर स्टेशन के समीप गोबरहिया गांव में एक बाबा द्वारा भूतों का मेला लगाकर आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खुल्लमखुल्ला खेल खेला जा रहा है। यह मेला प्रत्येक माह पूर्णिमा के दिन लगता है। इस मेले में नेपाल, उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों से हजारों की संख्या में पीड़ित महिलाएं आकर बाबा के दरबार में दुआ की भीख मांगती हैं।
आस्था के नाम पर लगने वाले इस मेले में आने वाले पीड़ितों की फेहरिस्त हर बार लंबी होती जाती है। पीड़ित महिलाओं की झाड़-फूंक के बाद भूत भगाने के लिए बाबा द्वारा पेड़ में कील ठोंककर बांध दिया जाता है। वाल्मीकि नगर व्याघ्र परियोजना के अधीनस्थ गोबरहिया गांव में चार वर्ष पूर्व मिट्टी की पीड़िया बनाकर एक पीपल के पेड़ के नीचे पूजा शुरू हुई थी। धीरे-धीरे अंधविश्वास का जाल फैलता गया और धर्म के नाम पर भूतों से निजात दिलाने का ठेका इस बाबा ने ले लिया।
बाबा कैसे करते हैं पीड़ितों का इलाज
पूर्णिमा के एक दिन पहले हजारों की संख्या में महिलाएं मेला में पहुंच जाती हैं। अगले दिन अल सुबह गांव के समीप स्थित एक तालाब में स्नान करती हैं, उसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे कतारबद्ध होकर वहां गाड़े गये ध्वजा की तरफ ध्यान लगाकर बैठ जाती हैं। इसी बीच पुजारी हरेन्द्र दास उर्फ लालका बाबा आते हैं और लाइन में बैठी पीड़िताओं को एक कुआं से जल निकालकर पीने के लिए देते हैं। जल पीने के बाद महिलाओं पर भूत का नशा सवार हो जाता है। इसके बाद वे झूमने और तरह-तरह की हरकतें शुरू कर देती हैं।
पीड़ित महिलाएं जमीन पर हाथ-पैर पटक-पटक कर चिल्लाने लगती हैं, वहीं अपने सिर को हिला-हिलाकर गीत गाने लगती हैं। इस क्रम में उनके खुले बाल और चेहरे को देखकर ऐसा लगता है कि मानो भूत इन महिलाओं पर सवार हो गया है। बाबा कुछ देर बाद महिलाओं को फिर जल पिलाते हैं। इसके बाद वे थोड़ी देर के लिए शांत पड़ जाती हैं। फिर देर रात झांड़-फूंक के बाद बाबा के द्वारा पीपल के पेड़ में एक-एक कील ठोंककर यह कहा जाता है कि तीन बार यहां आने के बाद भूत खुद ही भाग जाएगा।
अय्याशी भी करते हैं बाबा
मेले में आने वाली महिलाओं के साथ बाबा द्वारा अय्याशी करने की भी सूचना है। बाबा संभ्रांत परिवार की वैसी महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं, जिन्हें बेटा नहीं हो रहा हो या फिर शादी के बाद उनका पति परदेश चला गया हो। हालांकि, इस बात की कहीं से पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन बाबा की अय्याशी स्थानीय लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई है। बहरहाल, विज्ञान के नित्य नये खोजों के बीच अंधविश्वास के प्रति बढ़ रहा आस्था का यह खेल कई सवालों को जन्म दे रहा है।

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अकबर और वीरबल का मिलन

अकबर को वीरबल कैसे मिले, इसके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन उनमें कोई भी पूर्णतः विश्वसनीय नहीं है। इस बारे में जो कथा सबसे अधिक विश्वसनीय प्रतीत होती है, वह यहाँ दे रहा हूँ।
कहा जाता है कि वीरबल आगरा में किले के बाहर पान की दुकान करते थे। उस समय उनका नाम महेश था। एक बार बादशाह अकबर का एक नौकर उनके पास आया और बोला- ‘लाला, आपके पास एक पाव चूना होगा?’ यह सुनकर वीरबल चौंक गये और पूछा- ‘क्या करोगे एक पाव चूने का? इतने चूने की जरूरत कैसे पड़ गयी तुम्हें?’
वह बोला- ‘मुझे तो कोई जरूरत नहीं है, पर बादशाह ने मँगवाया है।’
वीरबल ने पूछा- ‘बादशाह ने मँगवाया है? जरा तफसील से बताओ कि क्यों मँगवाया है?’
वह बोला- ‘यह तो पता नहीं कि क्यों मँगवाया है। पर आज मैं रोज की तरह बादशाह के लिए पान लगाकर ले गया था। उसको मुँह में रखने के बाद उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पास एक पाव चूना होगा? मैंने कहा कि है तो नहीं, लेकिन मिल जाएगा। तो बादशाह ने हुक्म दिया कि जाकर ले आओ। बस इतनी सी बात हुई है।’
‘तो मियाँ अपने साथ अपना कफन भी लेते जाना।’
यह सुनते ही वह नौकर घबड़ा गया- ‘क्.. क्.. क्या कह रहे हो, लाला? कफन क्यों?’
‘यह चूना तुम्हें खाने का हुक्म दिया जाएगा।’
‘क्यों? मैंने क्या किया है?’
‘पान में चूना ज्यादा लग गया है। इसलिए उसकी तुर्शी से तुम्हें वाकिफ कराने की जरूरत महसूस हुई है।’
‘लेकिन इतना चूना खाने से तो मैं मर जाऊँगा।’
‘हाँ, तभी तो कह रहा हूँ कि कफन साथ लेते जाना।’
अब तो वह नौकर थर-थर काँपने लगा। रुआँसा होकर बोला- ‘लाला,जब आप इतनी बात समझ गये हो, तो बचने की कोई तरकीब भी बता दो।’
वीरबल ने कहा- ‘एक तरकीब है। बादशाह के पास जाने से पहले तुम गाय का एक सेर खालिश घी पी जाना। जब चूना खाने का हुक्म मिले, तो चुपचाप खा जाना और घर जाकर सो जाना। तुम्हें कुछ दस्त-वस्त लगेंगे, लेकिन जान बच जायेगी।’

वह शुक्रिया करके चला गया।
घी पीकर और चूना लेकर वह बादशाह के पास पहुँचा- ‘हुजूर, चूना हाजिर है।’
अकबर ने कहा- ‘ले आये चूना? इसे यहीं खा जाओ।’
‘जो हुक्म हुजूर’ कहकर वह चूना खा गया। अकबर ने हुक्म दिया- ‘अब जाओ।’ कोर्निश करके वह चला गया।
अगले दिन वह फिर पान लेकर हाजिर हुआ। उसे देखकर अकबर को आश्चर्य हुआ- ‘क्या तुम मरे नहीं?’
‘आपके फजल से जिन्दा हूँ, हुजूर!’
‘तुम बच कैसे गये? मैंने तो तुम्हें एक पाव चूना अपने सामने खिलाया था।’
‘हुजूर, आपके पास आने से पहले मैंने गाय का एक सेर घी पी लिया था।’
‘यह तरकीब तुम्हें किसने बतायी? और तुम्हें कैसे पता था कि मैं चूना खाने का हुक्म दूँगा?’
‘मुझे नहीं पता था, लेकिन पान वाला लाला समझ गया था। उसी ने मुझे यह तरकीब बतायी थी, हुजूर।’
अब तो अकबर चौंका। बोला- ‘पूरी बात बताओ कि तुम दोनों के बीच क्या बात हुई?’
तब उस नौकर ने वह बातचीत कह सुनायी जो उसके और वीरबल के बीच हुई थी। यह सुनकर अकबर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। बोला- ‘यह पानवाला लाला तो बहुत बुद्धिमान मालूम होता है। तुम उसको हमारे पास लेकर आना। हम उसे अपना दोस्त बनायेंगे।’
तब वह नौकर वीरबल को लेकर अकबर के पास गया और इस प्रकार अकबर और वीरबल में मित्रता हुई।

Goa king

27 मार्च 2013

मां का आंचल



मां रेवा का आंचल आज भी पहले की तरह फैला हुआ था. नर्मदा प्रसाद भागते हुयें आया और धड़ाम से जाकर उसके आंचल में जा गिरा. मां रेवा ने अपना ममतामयी हाथ जब उसके सिर पर फेरा तो वह रो पड़ा. वह कुछ पुछना चाहता था लेकिन उसे जोर की भुख लगी थी. मां रेवा समझ चुकी थी कि उसका लाड़ला भुख से व्याकुल हो रहा है उसने उसके लिए भोजन की थाल परोस दी. भरपेट खाना खाकर वह फिर सो गया. वह ऐसा सोया कि अपने साथ लायें अनेक सवालों को वह भूल गया. जैसे ही भोर होने को आई कि उसे एक बार फिर मां रेवा ने नींद से जगाते हुयें कहा ‘ बेटा नर्मदा जरा उठ तो देख बेटा भोर होने वाली है. जा अपने मालिक के घर वहां उसके कोठे में बंधी पड़े गाय के बछड़े उनके छुटने का इंतजार कर रहे होगें …….! अगर तू नहीं गया तो वे बेचारे भुखे रह जायेगें ……..! सुन  बेटा नर्मदा उन्हे भी तेरी तरह उनकी मां से मिल कर अपनी भुख प्यास को शांत करना है……….. !
अधकचारी नीदं से अलसाय हुयें नर्मदा की बार तो इच्छा हुई कि वह मना कर दे ……… पर उसे तो जाना ही होगा क्योकि उसका मालिक बड़ा ही निर्दय और जालिम किस्म का है. वह जानता है कि एक दिन अगर कोठे से जानवर नहीं छुटेगें तो उसका मालिक उसे मार मार कर लहु लुहान कर देगा. वह डर के मारे उठ कर अपने मालिक के घर की ओर सरपट भागा. उसे आज इतनी जल्दी थी कि वह यह तक भूल गया कि वह यह तक भूल गया कि वह मां रेवा से आज क्या पुछने के लिए आया था.
पौराणिक कथाओं में सदियों से देवी देवताओं की आरध्य रही जगत तारणी पूण्य सलिला मां नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है. इसी जग कल्याणकारी मां रेवा के किनारे बसे एक छोेटे से गांव में रहने वाला नर्मदा प्रसाद करीब बीस साल पहले आई बाढ़ में अपने माता – पिता के साथ बहते हुयें इसी गांव के गोपाल मछुआरे को मिला था. नर्मदा प्रसाद के माता -पिता पहले ही दम तोड़ चुके थे. उनकी बहती लाश के साथ नर्मदा प्रसाद भी मछली की तलाश में जाल बिछायें गोपाल के जाल में आकर उलछ गया. गोपाल ने उसे बाहर निकाल कर फेकना चाहा लेकिन उसे उस नन्हे सी जान के शरीर में हलचल होती दिखाई दी. गोपाल अपने मछली के जाल को वही छोड़ कर उस बच्चे को लेकर गांव की ओर सरपट भागा. कुछ दिनो तक चले गांव के वैद्य के इलाज के चलते नर्मदा प्रसाद बच गया लेकिन वैद्य ने गोपाल को चेताया कि इस बच्चे को नदी के पानी से बचायें रखना. पानी देख कर इस बच्चे का शरीर अपने आप हिचकोले मारने लगेगा.
इस रहस्य को गोपाल ने किसी को नही बताया. आज इस घटना को लगभग बीस साल हो गये. ना तो गोपाल उस रहस्य को जान पाया कि उसके बाबा उसे नदी के किनारे जाने से क्यो रोकते थे. नर्मदा कई बार अपने बाबा को बिना बताये एक रहस्य को आज तक छुपायें रखा था कि वह जब भी मां रेवा के किनारे बहती धारा को एकटक निहारता था तो उस बीच धार में एक महिला अपनी बांहे फैलाये उसे अपनी ओर बुलाती थी. जब वह उसकी ओर जाता था तो नदी में अपनी आप रास्ता बन कर निकल आता था. उसे वह महिला कई बार अपने हाथों से  नाना प्रकार के पकवान खिलाती थी तथा अपने ही आंचल में सुलाती थी. उसे जब तक वह इस रहस्य को समझ नहीं सका तब तक ऐसा होता था. लेकिन एक दिन उसे नदी की ओर जाता उसके बाबा ने देख लिया तो उसके बाबा ने उसे बहुॅंत डाटा फटकारा तब से वह नदी के किनारे नही जाता था.
नर्मदा यह नहीं जान सका था कि उसके बाबा उसे क्यों नदी की ओर जाने से रोकते थे तथा नदी कह बीच धारा में बाहे फैलाये उसको बुलाने वाली महिला कौन है. उस महिला से उसका क्या नाता है. नर्मदा के अपने माता – पिता कौन थे इस बारे में उसे कोई जानकारी नही थी. पर उसने गंाव वालों के मुह से सुना था कि बाबा उसके पिता नही है. आज उसके बाबा भी अब इस दुनिया में नहीं रहे. एक रात जब उसे अपने बाबा से जिद करके यह जानने की कोशिश की कि बाबा आप मुझे क्यों नदी के किनारे जाने से रोकते है. तब उसके बाबा ने कहा कि वह कल उसे उस राज को बता देगा जो कि बरसो से उसके दिल के किसी कोने मेे दबा पड़ा है. कल सुबहउठ कर वह अपने बाबा से उस रहस्य को जान पाता इसके पहले ही उसे सुबह उठ कर गंाव के जमींदार के कोठे पर जाकर गाय बछड़ो को छोडना था. अपने वादे के मुताबिक गोपाल उस राज को बताने के पूर्व ही उस दिन चल बसा.
गोपाल बाबा उसे नर्मदा प्रसाद कह कर पुकारते थे.  अपने के नाम के पीछे बाबा कहा करते थे कि बेटा तू मां कौन है ……..! किस जाति का है ………….!  किस गांव का है …………..! तेरे कौन रिश्तेदार है ……………? मैं नहीं जानता. तू मुझे मां नर्मदा की साठ साल की सेवा के बदले में मिला प्रसाद है इसलिए तू मेरा नर्मदा प्रसाद है………! गोपाल के मरने के बाद गंाव वालों ने इस एक बार फिर अनाथ हुयें नर्मदा प्रसाद के बारे में जांच पड़ताल की पर किसी को यह तक नही मालुम कि बाढ ़में बहता मिला यह बच्चा किसका था……? लगभग बीस साल पहले भी गांव वालों ने आसपास के गांवों तक मुनादी करवा दी थी कि जिसके भी परिवार के लोग बाढ़ में बह गयें हो वे आकर इस बच्चे के बारे में जानकारी देकर उसे ले जाना चाहे तो ले जा सकते है. लेकिन कोई नही आया तो गोपाल मछुआरे ने उसे अपने बेटे की तरह पाल पोश कर बड़ा किया था. गोपाल बाबा के मरने के बाद नर्मदा प्रसाद ने जमीदार के घर की नौकरी छोड़ दी वह अपने बाबा के पुश्तैनी काम को करने का बीड़ा उठा कर वह नही की ओर चला गया.
आज एक बार फिर मां रेवा में बाढ़ आई थी. उसका पानी हिलांेरे मार कर इस किनारे से उस किनारे तक अठखेलिया कर रहा था. नर्मदा प्रसाद को ऐसा लगा कि नदी की बीच धारा कोई महिला बाहें फैला कर उसे आंखों के छलकते आंसुओं से पुकार रही है. काफी देर तक उस महिला को अपनी ओर बाहें फैला कर पुकारते देख नर्मदा प्रसाद का शरीर हिचकोले मारने लगा. वह ऊफनती रेवा की बीच धारा में उसे पुकार रही महिला की ओर सरपट भागा. उसे पानी में भागते देख उसके संगी साथी गांव की ओर बद्हवाश से भागे. कुछ ही पल में पुरा गांव मां रेवा के किनारे जमा हो गया. गांव वाले शाम तक रहे पर किसी को भी नर्मदा का अता पता नही मिला तो गंाव वाले खाली हाथ वापस लौट कर आ गयें. गांव वाले कहने लगे बेचारा नर्मदा जहॉ से आया वहीं चला गया. नर्मदा के इस तरह नदी में बह जाने से पुरे गंाव में आज रात किसी के घर पर चुल्हा नही जला. सबके सब उदास थे. लोगो की आंखों के आंसु झर झर कर बह रहे थे. सारे गंाव वाले को आज ऐसा लग रहा था कि उसके परिवार का कोई सदस्य बह गया हो. आज की रात लोगो को पहाडत्र जैसी लग रही थी. कई लोगो ने तो रात भर सोच सोच कर काट ली. हर कोई नर्मदा को लेकर परेशान था.
खुले आसमान के चांद तारों को देख कर रात के पहर कटने के इंतजार करने वाले लोगो को जैसे ही भोर के होने की आहट हुई लोग अपने घरों से बाहर की ओर निकल पडें. हर कोई एक दुसरे की आंखों में झांक कर एक दुसरे को बताना चाह रहा था कि उसने इस काली अमावस्या जैसी रात को कैसे काटा है. गांव वाले अपने घरों से बाहर निकल कर रेवा के किनारे जाकर नर्मदा को तलाशते इसके पहले ही उन्हे रेवा के तट की ओर गंाव को आते रास्ते एक युवक आता हुआ दिखाई दिया. पास आने पर ऐसा लगा कि आने वाला कोई नही अपना नर्मदा है तो सारा गांव खुशी के मारे उसकी ओर दौड़ पड़ा.
नर्मदा को जिंदा देख कर गांव की महिलाआंे के अंाचल भर आयें. गांव वाले दिल धडकने लगे. नर्मदा को जिंदा देख कर सब के सब प्रसन्नचित थे वही हर छोटे बडें सबके चेहरे पर एक जिज्ञासा झलक रही थी कि नर्मदा तू रात भर कहॉ था………?  वह मंा रेवा की ऊफनती धारा की ओर क्यों भागा था…..!  उसके साथ क्या हुआ…….! नर्मदा ने इस तरह सारे गांव वालों  को अपनी ओर जिज्ञासा भरी निगाहों से देख तो वह कुछ पल के लिए डर गया. उसने डरते डरते गंाव वालों से पुछा  पुछा इतनी सुबह पुरा गंाव कहॉ जा रहा है……..? उसके सवालों को सुन कर केतकी आजी रो पड़ी उसने नर्मदा के सिर पर हाथ फेर कर कहा बेटा हम तुझे ही ढुढ़ने जा रहे थे…….! तू रात भर से घर नहीं आया था……..! कल तेरे साथ गयें कुछ लड़को ने तुझे ऊफनती रेवा की बीच धारा में भागते हुयें देखा तब से पुरा गांव परेशान है.
केतकी आजी के बताने पर कुछ याद आया.उसने बताया कि कल जब वह रेवा के किनारे मछली का जाल बिछाने गया था तब उसने देख कि नदी में बाढ़ आई थी. नदी की बीच धार में कोई महिला मुझे बांहे फैला कर अपनी ओर बुला रही है ………! मैं उसकी ओर भागा……. उसके बाद मुझे पता नही कि क्या हुआ………..? मुझे जब होश तब मैंने अपने आप को नदी के  दुसरे छोर पर पाया.मुझे आसपास चीखते सन्नाटे में समझ आया कि मैं जिस स्थान पर लेटा हू उसके आसपास कोई नदी बह रही है. दिमाग पर काफी जोर देने के बाद मुझे पता चला कि मैं जिस स्थान पर लेटा हुआ था उससे चार पांच फंलाग की दूरी पर मां रेवा बह रही है. मुझे डर लग रहा था मैं थर थर कर कांपते कांपते खुले आसमान में चन्द्रा के प्रकाश में उस भयावह चीखते सन्नाटे को चीरते हुयें नदी के किनारे आने के लिए निकल पड़ा . खुले आसमान में दिखने वाली चांदनी बता रही थी कि रात का तीसरा पहर बीत चुका है. चौथे पहर के शुरू होते ही मैंने अपने घर की ओर आने का मन बना कर मै जैसे नदी के किनारे आया तो मेरी सिटट्ी पिटट्ी गुम हो गई. कल की तरह आज भी मां रेवा पुरे उफान पर बह रही थी.चन्द्रमा के प्रकाश में साफ दिख रहा था कि मां रेवा नदी की धार में काफी बहाव था. नदी अपने अपने दोनो किनारों के उपर से बह रही थी. मुझे इस नदी पार करके गांव की ओर आना था. मुझे तो तैर कर नदी पार करना भी नहीं आता था. अब मेरे लिए नदी पार करके आना बड़ा ही कठीन काम था. मैं इसी उधेड़बुन में कुछ सोच रहा था कि मुझे ऐसे लगा कि कोई मेरा नाम लेकर पुकार रहा है.
मैने आसपास चारों ओर चन्द्रमा के प्रकाश में अपनी निगाहे घुमा कर देखा तो मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया. सुनसान इलाके में जब किसी ने मेरा नाम लेकर एक बार फिर किसी ने मुझे पुकारा तो घबरा गया. इस बार की आवाज किसी महिला की थी. मैं उस अपरिचित महिला की आवाज को पहचानने की कोशिस कर रहा था कि इतने में वह आवाज एक बार फिर मुझे सुनाई दी. वह अपरिचित आवाज मुझसे कह रही थी बेटा ‘ नर्मदा तू उस पार जाना चाहता है तो , नदी की बीच धार को पार करके चले आ. ’ मैं नदी के किनारे को छुती उसकी धार तक आने की हिम्मत तक नहीं कर पा रहा था. ऐसे में किसी ने मेरी किसी अदृश्य परछाई ने मेरी बांह पकड़ी और मुझे नदी की धार तक ले आया. मैंने जैसे ही नदी में पांव रखा कि चमत्कार हो गया . नदी के बीचो बीच में एक पगडंडी निकल आई जिस पर मैं चलकर नदी के इस छोर से दुसरे छोर तक चला आया. मैने जैसे पलटकर देखा तो मां रेवा उसी गति से शोर मचाती बह रही थी. मैं नदी पार कर सीधा चला आ रहा हूॅं.
नर्मदा की बात को सुन कर गांव वालों का आश्चर्य का ठिकाना नही था. इतने साल से मां रेवा के किनारे रहते हो गयें लेकिन उन्हे आज तक मां रेवा ने कभी दर्शन तक नहीं दियें और इस लड़के की किस्मत तो देखियें कि यह उसकी गोद में खेल आया है. नर्मदा की बताई बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे पुरे गांव को जैसे लकवा मार गया. गांव वालों के लिए नर्मदा की बताई बाते किसी अनहोनी घटना से कम नही थी. पुरा गंाव नर्मदा की बातों को सुन कर नर्मदा मैया की जय जय कार करते नदी के किनारे की ओर दौड़ पड़ा.आज इस घटना को बीते कई साल हो गयें लेकिन गांव में अब भी मां रेवा के किनारे एक घास फुस की झोपड़ी बना कर रह रहा नर्मदा को विश्वास है कि वह एक बार अपनी अंतिम सांस मां रेवा के आंचल में ही लेगा. उसे हर पल इंतजार है कि कब मां रेवा उसे एक बार फिर पुकार कर कहे बेटा नर्मदा आ अब विश्राम कर ले.
साभार

07 मार्च 2013

जिन्नात की शादी

आरा शहर की घटना है. लगभग 70 वर्ष पुरानी. लेकिन लोगों के बीच अभी भी कही-सुनी जानेवाली.
आरा शहर का एक मोहल्ला है शिवगंज. वहां हाल के वर्षों तक रूपम सिनेमा हॉल हुआ करता था. उसके बगल की गली में एक बड़े ही विद्वान पुरोहित रहा करते थे जो अपनी ज्योतिष विद्या की जानकारी के लिए दूर-दूर तक जाने जाते थे.
एक बार की बात है. रात के करीब 2 बजे वे दूसरे शहर के किसी जजमान के यहां से पूजा संपन्न कराकर लौट रहे थे. अपनी गली के मोड़ पर रिक्शा से उतर कर वे घर की और बढे ही थे कि अचानक एक गोरा चिटठा, लम्बा-चौड़ा आदमी उनके सामने आकर खड़ा हो गया. पंडित जी डर गए. उन्होंने पूछा-'कौन हो भाई! क्या बात है?'
'आप डरें नहीं. मैं एक जिन्न हूं. आपसे बहुत ज़रूरी काम है.' उसने जवाब दिया.
'अरे भाई! एक जिन्नात को मुझसे क्या काम....'
'आपको एक सप्ताह बाद मेरी शादी करनी है. कर्मन टोला की एक युवती का देहांत उसी दिन होना है. उसी के साथ मेरी शादी आपको करनी है. मुहमांगी दक्षिणा दूंगा.'
'जिन्नात की शादी..? मैंने ऐसी शादी कभी कराई नहीं. इसका विधान भी मुझे नहीं मालूम.'
'पंडित जी! शादी तो आप ही को करनी है. कैसे आप जानें. आज से ठीक आठवें दिन आप रात के एक बजे अबर पुल पर आपका इंतज़ार करूँगा. आपको वहां समय पर पहुँच जाना होगा. यह बात किसी को बताना नहीं है.' इतना कहकर जिन्नात गायब हो गया.
पंडित जी घर पहुंचे. रात भर सो नहीं सके. दूसरे दिन तमाम शास्त्रों को पलट डाला लेकिन जिन्नात की शादी की विधि नहीं मिली. अंततः उन्होंने कई किताबों का अध्ययन कर एक अपना तरीका निकाला.
आठवें दिन पंडित जी! डरते-सहमते रात के एक बजे से पहले ही अबर पुल पर पहुँच गए. एक बजे...डेढ़ बजे..दो बज गए लेकिन जिन्न नहीं पहुंचा. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. तभी अचानक झन्न की आवाज़ के साथ जिन्नात प्रकट हुआ. उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी.
' माफ़ कीजिये पंडित जी! यह शादी नहीं हो सकेगी.'
'क्यों क्या हो गया.'
'वह लडकी मरी तो ज़रूर लेकिन मरने के वक़्त जब उसे ज़मीन पर लिटाया गया तो रुद्राक्ष का एक दाना उसके शरीर को छू रहा था. इसके कारण मरने के बाद वह सीधे शिवलोक चली गयी. अब वह वहां से वापस नहीं लौटेगी. इसलिए अब उसके साथ मेरी शादी नहीं हो पायेगी.
उसने पंडित जी की ओर चांदी के सिक्कों की एक थैली बढ़ाते हुए कहा, “आप मेरे आग्रह पर यहां तक आये. इसे दक्षिणा समझ कर रख लीजिये. आपकी बड़ी मेहरबानी होगी.”
पंडित जी ने कहा कि जब शादी करवाई नहीं तो दक्षिणा कैसा. लेकिन जिन्नात उनके हाथ में थैली थमाकर गायब हो गया.
पंडित जी घर वापस लौट आये. कई वर्षों तक उन्होंने इस घटना का किसी से जिक्र नहीं किया. बाद में अपने कुछ करीबी लोगों को यह घटना सुनाई. धीरे-धीरे लोगों तक यह किस्सा पहुंचा.


06 मार्च 2013

काला गुलाब


उस दिन रात की घटना को याद कर तरह-तरह के विचारों में खोये मनोज को पता ही नहीं चला की कब अंजली उसके कमरे में आ गई. अचानक अंजली को पता नहीं क्या शरारत सुझी उसने चुपके से विचारो में खोये मनोज की आँखो को अपने दोनो हाथों की हथेली से दबाई, मनोज ने जैसे ही अपनी आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह जोर से चीख पड़ा. अचानक मनोज के जोर से चीख कर बेहोश हो जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. मनोज की हालत देखकर वह थर-थर कांपने लगी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को ऐसा क्या हो गया…..?

मनोज की चीख को सुन कर उसके पड़ौस में रहने वाली अनुराधा दौड़ी चली आई. मनोज की चीख इतनी जोर की थी कि आसपास के लोग भी घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये.बड़े दिन की छुट्टïी खत्म होने वाली थी. स्कूल-कालेज लगना शुरू होने वाले थे. इस बीच अपने गांव से जल्दी लौट आये मनोज को अब सर पर सवार परीक्षा की तैयारी में जुट जाना था. अर्ध वार्षिक परीक्षा के बाद होने वाली पढ़ाई में जरा सी भी बरती ढील पूरा साल बरबाद कर सकती थी. सुबह जल्दी न उठ पाने की आदत के कारण मनोज ने अपने मकान मालिक से कहा था कि अंकल आप जब भी मार्निंग वाक के लिये जाते हैं मुझे भी साथ लेते चलिये मैं भी साथ चलूंगा. पिछले कई सालों से मनोज के मकान मालिक कुंदन मैथ्यू मार्निंग वाक के लिये जाते थे. मनोज ने सोचा कि वह सुबह चार से साढ़े पांच बजे तक मार्निंग वाक के बहानें अपनी किताबें-कापियां लेकर शांति से खुले मैदान में बैठकर पढ़ लेगा. एक पंथ दो काज के बहाने से सुबह देर से जगने की परेशानी से भी मुक्ति मिल जाएगी. अपने कमरे में सोने जाने से पहले मनोज ने एक बार फिर याद दिलाते हुये कहा कि अंकल रात से मैं भी आपके साथ चलूंगा.
मनोज का कमरा ऊपर की मंजिल पर होने की वजह से तीन चार दोस्त साथ मिलकर रहा करते थे. मनोज के सहपाठी आज शाम तक वापस लौट कर आने का कह कर गये थे लेकिन जब वे नहीं आये तो आज शाम को ही अपने गांव से वापस लौटे मनोज को आज की रात अकेले ही काटनी थी. इसलिये वह ज्यादा देर तक जगने के बजाय सोने चला गया. 31दिसंबर की उस रात अपने कमरे में अकेले सोये मनोज ने उस रात को जोर की पडऩे वाली ठंड से बचने के लिए अपने सारे गर्म कपड़े पहनने के बाद अपने गांव से अबकी बार साथ लाई जयपुरी मखमली रजाई को अपने ऊपर डाल कर उसकी गर्माहट में दुबक कर सो गया. सपनों की दुनिया में खोये मनोज की अचानक हुई खटपट की आवाज से नींद खुल गई. उसने अपने कमरे का नाइट लैम्प जलाया तो उसे अचानक नाइट बल्ब की रोशनी में जो दिखाई दिया उससे वह बुरी तरह डर गया. उसे अपने कमरे में एक भयानक डरावनी सूरत वाली काली बिल्ली दिखाई दी. जिसकी आँखो से अंगारे बरस रहे थे. उस काली भयावह डरावनी सूरत वाली बिल्ली से वह कुछ पल के लिये डर गया लेकिन उसने हिम्मत से काम लेते हुए उस बिल्ली को भगाने के लिए डंडा तलाशना चाहा , लेकिन उसे जब कहीं भी डंडा दिखाई नहीं दिया इस बीच डंडा तलाशते समय उसकी न$जर अनायास सामने की ओर बने सेंट पाल चर्च की ओर गई तो उसका कलेजा कांप गया. उसने अपने ऊपर की मंजिल पर स्थित कमरे से देखा कि रात के समय आसमानी तारों की जगमग रोशनी में उस चर्च के सामने बनी बावली के भीतर से एक महिला निकल कर उसके मकान की ओर आती दिखाई दी. सफेद लिबास पहनी वह महिला उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू के कमरे की ओर आती दिखाई दी वह महिला आई महिला बिना कुछ बोले उसके मकान मालिक के कमरे में चली गई. उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने अभी कुछ देर पहले क्या देखा. आखिर वह महिला कौन थी. उसका इस मकान मालिक से क्या नाता-रिश्ता है. वह यहां पर इतनी रात को क्या करने आई है……? और न जाने कितने प्रकार के विचारों में खोए मनोज का डर के मारे बुरा हाल था. अगर वह बिस्तर पर जाकर नहीं बैठता तो वह बुरी तरह लडख़ड़ा कर गिर जाता.
मनोज ने जैसे – तैसे पूरी रात को अपनी आँखे के सामने कांटा. उसका एक- एक पल उसे सालो की तरह लग रहा था. सुबह होते ही जब उसके मकान मालिक कुंदन मैथ्यू ने उसे घूमने के लिये चलने को कहा तो उसने पेट दर्द का बहाना बना कर वह अपने बिस्तर में दुबक कर सो गया. उसकी आंखों की नींद उड़ गई थी वह बार-बार यही सोचता रहा कि उस बावली से निकलने वाली महिला कौन थी? उसका इस मकान मालिक से क्या संबंध है? सवालों में उलझे मनोज ने किसी तरह दिन निकलते तक का समय काट लिया पर वह रात की घटना से परेशान हो गया. दिन भर बेचैन मनोज जब आज कॉलेज भी नहीं आया तो उसके मकान मालिक ने उससे आखिर पूछ लिया-बेटा मनोज क्या बात है? तुम्हारा पेट दर्द क्या अब भी कम नहीं हुआ है? अगर तकलीफ अभी भी है तो डाक्टर के पास चलो मैं तुम्हें ले चलता हंू. नहीं अंकल ऐसी कोई बात नहीं है, बस यूं ही इच्छा नहीं हो रही है. आप चिंता न करें मैं ठीक हंू यह कह कर मनोज अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गया. रात की घटना को याद करता विचारों में खोये मनोज की अचानक किसी ने आंखों पर हथेली रखकर उसकी आंखोंं को दबा दिया. मनोज ने जैसे ही आंखों को दबा रखी हथेलियों का स्पर्श किया तो वह चीख पड़ा और वह कटे वृक्ष की भॉति जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा. मनोज के चीख कर बेहोश गिर जाने से अंजलि बुरी तरह घबरा गई. वह मनोज की हालत देखकर थर-थर कांप रही थी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक मनोज को क्या हो गया. मनोज की चीख को सुनकर आसपास के लोग घबरा कर मनोज के पास दौड़ कर चले आये. कुछ ही पल में पूरा मोहल्ला जमा हो गया. किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था. अंजलि का तो हाल बेहाल था. कुछ लोग मनोज को उठाकर उसके कमरे में ले गये. इस बीच कुछ लोग डाक्टर को तो कुछ लोग झाडऩे-फूंकने वाले को लेकर आ गये. डाक्टरों के लाख प्रयास के बाद रात वाली घटना को याद करके सिहर उठता था. इस बीच जब अंजलि ने चुपके से आकर उसकी आँखे क्या दबाई वह चीख कर ऐसा बेहोश हुआ कि उसे अभी तक होश नहीं आया. जब काफी देर तक मनोज को होश नहीं आया तो फिर क्या था उसके आस – पडौस के लोगो ने ओझा फकीरो को बुलवा लिया. सुबह से लेकर शाम तक झाड़ – फुक जंतर-मंतर का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर राबिंसन इन बातों पर विश्वास नहीं करते थे. इस बीच कोई मौलाना साहब को लेकर आ गया. मौलाना साहब ने कुछ बुदबुदाते हुये मनोज के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो अचानक बड़ी-बड़ी आंखें खोलकर घूरता हुआ जनानी आवाज में बोला ”तुम सब भाग जाओं नहीं तो किसी एक को भी नहीं छोडूंगी. …………. मौलाना साहब ने बताया कि यह लड़का किसी जनानी प्रेत के चक्कर में पड़ गया है. इसे कुछ समय लगेगा. ऐसा करें आप आधा घंटे का मुझे समय दे दीजिये. मैं इसे ठीक कर दूंगा. हां एक बात और भी इस लड़के का कोई अगर अपना है तो वह ही इसके साथ रहे बाकी सब चले जायें. सभी लोग अंजलि को छोड़ जाने लगे तो अंजलि जो कि इन सब बातों से बुरी तरह घबरा गई थी. बोली-प्लीज मेरे पापा को फोन करके बुला दीजिये न. अंजलि के पापा इसी शहर के पुलिस कप्तान थे इसलिये उन तक खबर पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं थी. पुलिस कप्तान साहब की बिटिया की खबर कौन नहीं पहुंचाएगा. लोग खबर देने के लिये दौड़ पड़े.
पुलिस कप्तान ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह का पूरे जिले में दबदबा था. अपराधी तो उसके नाम से ही थर-थर कांपता था. अंजलि उनकी एकमात्र संतान थी. तेजतर्रार पुलिस कप्तान साहब की एकमात्र नस थी तो वह उनकी बिटिया अंजलि जिसे वे बेहद प्यार करते थे. अंजलि मनोज के साथ डेनियल कालेज कला की छात्रा थी. मनोज भी उसी कालेज में साइंस का छात्र था. दोनों एक-दूसरे के विपरीत कोर्स की पढ़ाई कर रहे थे. कालेज की केन्टीन से शुरू हुये अंजलि और मनोज के प्रेम प्रसंग ने उन्हें पूरे कालेज में चर्चित कर रखा था. पुलिस कप्तान की बिटिया होने की वजह से हर कोई उसके आसपास आने से डरता था. वह अक्सर मनोज से मिलने आती थी. पिछले चार-पांच माह से दोनों के बीच चल रहे प्रेम प्रसंग की पूरी कालोनी में चर्चा होती थी. लोग चर्च कालोनी के इन दोनों प्रेमियों की तुलना हिर-रांझा, लैला-मजनू, सोनी-महिवाल से करते थे. अंजलि शहर के पुलिस कप्तान की बिटिया थी इसलिये कोई भी उसके बारे में बुरा भला कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. कई बार तो कप्तान की कार ही मनोज को लेने आती थी. पूरे मोहल्ले में मनोज का जलवा था. अंजलि की मम्मी को ब्लड कैंसर की बीमारी थी. जिसकी वजह से वह असमय ही काल के गाल में समा गई थी. अंजलि की मम्मी का जब निधन हुआ था उस समय वह छ: माह की थी, ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह पर परिवार के लोगों का काफी दबाव आया कि वे दूसरी शादी कर लें, पर कप्तान साहब अपनी जिंदगी में किसी दूसरी औरत को आज तक आने नहीं दिया. अंजलि ही उसके जीने का एक मात्र सहारा थी. जब अंजलि के बीच प्रेम प्रसंग की उन्हें खबर मिली तो सबसे पहले कप्तान साहब ने बिना किसी को कुछ बताये मनोज के पूरे परिवार की जन्म कुंडली अपने मित्र से मंगवा ली थी. मनोज के घर परिवार के तथा उसके आचार विचार ने पुलिस कप्तान का दिल जीत लिया था. पुलिस कप्तान ने मनोज को अपना भावी दामाद बनाने का फैसला कर लिया था. अगले वर्ष दोनों का विवाह कर उनका घर संसार बसा देने का फैसला ठाकुर महेन्द्र प्रतापसिंह तथा मनोज के पापा के बीच हो चुका था लेकिन दोनों के बीच की बातचीत को अभी गुप्त रखा था. इस बात का न अंजलि को पता था और ना ही मनोज को आभास था कि उसके पापा और अंजलि के डैडी के बीच कोई बातचीत भी हुई है.
अंजलि की खबर मिलते ही पुलिस कप्तान दौड़े चले आए. उनके साथ शहर का पुलिस विभाग भी आगे-पीछे दौड़ा चला आया. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह की बिटिया संकट में है यह खबर सुन कर भला कौन चुप बैठ सकता था. सबसे ज्यादा हैरान – परेशान अखबार और टी.वी. चैनल वाले थे क्येकि उन्हे आपस में इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उनकी खबर आने के पहले ही कोई ब्रेकिंग न्यूज न चला दे. शहर में सनसनी खेज खबर के घट जाने के चलते सारे मीडिया कर्मी ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह को खोजते कुन्दन मैथ्यू के घर पर आ धमके. सेंट पाल चर्च कालोनी की इस घटना की चर्चा शहर के पान ठेलो एवं होटलो तथा चाक चौराहो पर होने लगी. कुन्दन मैथ्यू के घर पुलिस कप्तान के पहँुचते ही वहाँ पर जमी भीड़ छटने लगी. ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह उस कमरे में चले गए जहाँ पर गुमसुम अंजलि और मौलवी साहब के अलावा मनोज के अलावा उनके आसपास के लोग बैठे हुए थे. पापा के आते ही अंजलि स्वंय को रोक नही सकी और दहाड़ मार कर रोने लगी. ”पापा देखा न मनोज का क्या हो गया…..? अपनी बेटी की आँखो में आँसू देख महेन्द्र प्रतापसिंह स्वंय को रोक नही सके वे कुछ पुछते इसके पहले ही मौलवी साहब ने उन्हे चुपचाप रहने का इशारा कर दिया. पुलिस कप्तान साहब कमरे के एक कोने में बैठ कर वहाँ पर होने वाली गतिविधियो को देखने लगे. इस बार फिर मौलवी साहब ने गेहूँ के दानो को मनोज पर फेका तो आँखो में अंगारे लिए मनोज सोते से जाग गया. उसने सामने के मौलवी से तू चला जा नहीं तो बात बिगड़ जायेगी…….. मौलवी ने इस बार फिर कुछ बुदबुदाया और मनोज के चेहरे पर वह अभिमंत्रित पानी फेका तो वह जनानी आवाज में बोला मुझे छोड़ दो………… मौलवी साहब बोलें पहले तू यह तो बता आखिर तू है कौन………? तूने इसे क्यो अपने जाल में फँसा रखा है………..? इस बार मनोज के शरीर में समाई प्रेतात्मा बोली………….. मैं मरीयम हँू…………..सिस्टर जूली की छोटी बहन हँू. फादर डिसूजा ने मेरी सिस्टर जूली से मैरिज की थी. मैं अपनी सिस्टर के पास ही रहती थी. आज से 45 साल पहले मेरी चर्च कालोनी की इस सामने वाली बावली में गिरने की वजह से मौत हो गई थी. मेरी मौत लोगो के बीच काफी समय तक चर्चा का विषय बनी क्योकि फादर डिसूजा ने मेरी मौत को आत्महत्या बताया था जिसे आसपास के लोग मानने को तैयार नही थे. उस समय मैं दसवी कक्षा में पढ़ती थी. कुंदन मैथ्यू फादर डिसूजा के घर पर ही रहता था इसलिए हम दोनो के बीच पता नही कब प्यार का बीज अंकुरित हो गया. कुंदन के बचपन मेरी माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गये थे . एक दिन फादर डिसूजा को भूखे से व्याकुल कुंदन एक होटल में चोरी करते मिला. फादर डिसूजा को कुंदन पर दया आ गई और उसने उसे पुलिस थाने से जमानत पर छुड़ा कर अपने पास ले आया. सात साल की उम्र से कुंदन फादर डिसूजा के पास ही रहता है. फादर डिसूजा ने कुंदन को ईसाई धर्म की दीक्षा देकर उसका नाम कुंदन मैथ्यू कर दिया. कुंदन ने भी फादर डसूजा को अपने माता- पिता की तरह चाह कर उसकी सेवा चाकरी में कोई कसर नही छोड़ी. फादर ने कुंदन का नाम सामने वाले चर्च स्कूल में लगा दिया. पढऩें में तेज कुंदन ने हर साल अव्वल नम्बर पर आकर पूरे शहर में अपने नाम की पहचान बना ली थी. इस बीच सिस्टर जूली ने चर्च स्कूल में बतौर टीचर के जब नियुक्त हुई तो वह भी कुंदन की पढ़ाई के प्रति लगन और क्लास तथा स्कूल में नम्बर वन आने की वजह से उस पर खास ध्यान देने लगी. सिस्टर जूली भी श्ुारूआती दिनो में चर्च कालानी में रहती थी लेकिन जब फादर डिसूजा से उसकी मैरीज हो गई तो वह अपनी छोटी बहन मरीयम के साथ रहने लगी. मरीयम भी कुंदन के साथ पढ़ती थी इसलिए दोनो साथ – साथ रहने और पढऩे के कारण एक दुसरे के हमजोली बन गये. सिस्टर जूली से मैरीज के बाद फादर डिसूजा का कुंदन के प्रति व्यवहार काफी बदल गया. कुंदन का स्कूल जाना बंद करवा दिया गया. उसे चर्च में चौकीदार की नौकरी पर रखवाने के बाद फादर डिसूजा ने मरीयम की कुंदन से बातचीत तक बंद करवा दी. फादर डिसूजा नहीं चाहतें थे कि मरीयम की मैरीज एक ऐसे लड़के से हो जिसके माता- पिता न हो…… जिसके पास न घर है न दो वक्त की दो का इंतजाम ऐसे लड़के से मैरीज न होने देने की वजह कुछ और ही थी. दर असल फादर मरीयम को पाना चाहते थे लेकिन सिस्टर जूली की वजह से उनकी दाल नही गल पा रही थी. एक दिन सिस्टर जूली और कुंदन किसी काम से दूर किसी शहर गये थे . उस रात को घर में अकेली देख फादर डिसूजा ने मरीयम की इज्जत लूटनी चाही तो वह अपनी जान बचाते समय ऐसी भागी की बावली में जा गिरी. मरीयम की अचानक मौत का सिस्टर जूली पर ऐसा सदमा पड़ा की वह अकसर बीमार पडऩे लगी और एक दिन चल बसी. फादर डिसूजा ने कई लोगो को मेरी मौत को आत्महत्या बताया लेकिन किसी ने भी उसकी बातो पर यकीन नही किया. मैने आखिर मेरी और मेरी सिस्टर जूली की मौत का बदला लेने के लिए मुझे मनोज का सहारा लेना पड़ा .
मैं मनोज को बस एक ही शर्त पर छोड़ सकती हँू यदि आप मेरी कब्र पर एक काला गुलाब वो भी मेरे और कुंदन के प्यार की निशानी बतौर लोगो के बीच लम्बे समय तक जाना – पहचाना जा सके. लोगो ने जूली की मनोज के माध्यम से कहीं बातो पर विश्वास करके एक काला गुलाब की कली की कहीं से व्यवस्था करके ज्यों ही उसकी कब्र पर गाड़ा इधर मनोज अपने – आप ठीक हो गया . आज भी कुंदन और जुली के प्यार का वह प्रतिक लोगो के लिए ऐसा सबक साबित हुआ है कि लोग कभी भी ऐसे प्रेमी के प्यार के बीच में खलनायक बनने का प्रयास नहीं करते जों एक दुसरे को जान से जयादा चाहते है. अभी कुछ दिनो पूर्व ही अंजली अपने पति मनोज और पापा डी .आई .जी . ठाकुर महेन्द्र प्रताप सिंह के साथ जब नागपुर जा रही थी तो वह छिन्दवाड़ा होते हुए जूली की कब्रतक पहँुची यह जानने के लिए की उसके द्वाराा अकुंरित काला गुलाब कैसा है………!
(कथा के पात्र काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई लेना – देना नहीं है। माडल चित्र केवल कथा को आकर्षक लगने के लिए लगाया गया है। इसका कथा से कोई सम्बन्ध नहीं है।)