अकबर को वीरबल कैसे मिले, इसके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन उनमें कोई भी पूर्णतः विश्वसनीय नहीं है। इस बारे में जो कथा सबसे अधिक विश्वसनीय प्रतीत होती है, वह यहाँ दे रहा हूँ।
कहा जाता है कि वीरबल आगरा में किले के बाहर पान की दुकान करते थे। उस समय उनका नाम महेश था। एक बार बादशाह अकबर का एक नौकर उनके पास आया और बोला- ‘लाला, आपके पास एक पाव चूना होगा?’ यह सुनकर वीरबल चौंक गये और पूछा- ‘क्या करोगे एक पाव चूने का? इतने चूने की जरूरत कैसे पड़ गयी तुम्हें?’
वह बोला- ‘मुझे तो कोई जरूरत नहीं है, पर बादशाह ने मँगवाया है।’
वीरबल ने पूछा- ‘बादशाह ने मँगवाया है? जरा तफसील से बताओ कि क्यों मँगवाया है?’
वह बोला- ‘यह तो पता नहीं कि क्यों मँगवाया है। पर आज मैं रोज की तरह बादशाह के लिए पान लगाकर ले गया था। उसको मुँह में रखने के बाद उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पास एक पाव चूना होगा? मैंने कहा कि है तो नहीं, लेकिन मिल जाएगा। तो बादशाह ने हुक्म दिया कि जाकर ले आओ। बस इतनी सी बात हुई है।’
‘तो मियाँ अपने साथ अपना कफन भी लेते जाना।’
यह सुनते ही वह नौकर घबड़ा गया- ‘क्.. क्.. क्या कह रहे हो, लाला? कफन क्यों?’
‘यह चूना तुम्हें खाने का हुक्म दिया जाएगा।’
‘क्यों? मैंने क्या किया है?’
‘पान में चूना ज्यादा लग गया है। इसलिए उसकी तुर्शी से तुम्हें वाकिफ कराने की जरूरत महसूस हुई है।’
‘लेकिन इतना चूना खाने से तो मैं मर जाऊँगा।’
‘हाँ, तभी तो कह रहा हूँ कि कफन साथ लेते जाना।’
अब तो वह नौकर थर-थर काँपने लगा। रुआँसा होकर बोला- ‘लाला,जब आप इतनी बात समझ गये हो, तो बचने की कोई तरकीब भी बता दो।’
वीरबल ने कहा- ‘एक तरकीब है। बादशाह के पास जाने से पहले तुम गाय का एक सेर खालिश घी पी जाना। जब चूना खाने का हुक्म मिले, तो चुपचाप खा जाना और घर जाकर सो जाना। तुम्हें कुछ दस्त-वस्त लगेंगे, लेकिन जान बच जायेगी।’
वह शुक्रिया करके चला गया।
घी पीकर और चूना लेकर वह बादशाह के पास पहुँचा- ‘हुजूर, चूना हाजिर है।’
अकबर ने कहा- ‘ले आये चूना? इसे यहीं खा जाओ।’
‘जो हुक्म हुजूर’ कहकर वह चूना खा गया। अकबर ने हुक्म दिया- ‘अब जाओ।’ कोर्निश करके वह चला गया।
अगले दिन वह फिर पान लेकर हाजिर हुआ। उसे देखकर अकबर को आश्चर्य हुआ- ‘क्या तुम मरे नहीं?’
‘आपके फजल से जिन्दा हूँ, हुजूर!’
‘तुम बच कैसे गये? मैंने तो तुम्हें एक पाव चूना अपने सामने खिलाया था।’
‘हुजूर, आपके पास आने से पहले मैंने गाय का एक सेर घी पी लिया था।’
‘यह तरकीब तुम्हें किसने बतायी? और तुम्हें कैसे पता था कि मैं चूना खाने का हुक्म दूँगा?’
‘मुझे नहीं पता था, लेकिन पान वाला लाला समझ गया था। उसी ने मुझे यह तरकीब बतायी थी, हुजूर।’
अब तो अकबर चौंका। बोला- ‘पूरी बात बताओ कि तुम दोनों के बीच क्या बात हुई?’
तब उस नौकर ने वह बातचीत कह सुनायी जो उसके और वीरबल के बीच हुई थी। यह सुनकर अकबर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। बोला- ‘यह पानवाला लाला तो बहुत बुद्धिमान मालूम होता है। तुम उसको हमारे पास लेकर आना। हम उसे अपना दोस्त बनायेंगे।’
तब वह नौकर वीरबल को लेकर अकबर के पास गया और इस प्रकार अकबर और वीरबल में मित्रता हुई।
कहा जाता है कि वीरबल आगरा में किले के बाहर पान की दुकान करते थे। उस समय उनका नाम महेश था। एक बार बादशाह अकबर का एक नौकर उनके पास आया और बोला- ‘लाला, आपके पास एक पाव चूना होगा?’ यह सुनकर वीरबल चौंक गये और पूछा- ‘क्या करोगे एक पाव चूने का? इतने चूने की जरूरत कैसे पड़ गयी तुम्हें?’
वीरबल ने पूछा- ‘बादशाह ने मँगवाया है? जरा तफसील से बताओ कि क्यों मँगवाया है?’
वह बोला- ‘यह तो पता नहीं कि क्यों मँगवाया है। पर आज मैं रोज की तरह बादशाह के लिए पान लगाकर ले गया था। उसको मुँह में रखने के बाद उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पास एक पाव चूना होगा? मैंने कहा कि है तो नहीं, लेकिन मिल जाएगा। तो बादशाह ने हुक्म दिया कि जाकर ले आओ। बस इतनी सी बात हुई है।’
‘तो मियाँ अपने साथ अपना कफन भी लेते जाना।’
यह सुनते ही वह नौकर घबड़ा गया- ‘क्.. क्.. क्या कह रहे हो, लाला? कफन क्यों?’
‘यह चूना तुम्हें खाने का हुक्म दिया जाएगा।’
‘क्यों? मैंने क्या किया है?’
‘पान में चूना ज्यादा लग गया है। इसलिए उसकी तुर्शी से तुम्हें वाकिफ कराने की जरूरत महसूस हुई है।’
‘लेकिन इतना चूना खाने से तो मैं मर जाऊँगा।’
‘हाँ, तभी तो कह रहा हूँ कि कफन साथ लेते जाना।’
अब तो वह नौकर थर-थर काँपने लगा। रुआँसा होकर बोला- ‘लाला,जब आप इतनी बात समझ गये हो, तो बचने की कोई तरकीब भी बता दो।’
वीरबल ने कहा- ‘एक तरकीब है। बादशाह के पास जाने से पहले तुम गाय का एक सेर खालिश घी पी जाना। जब चूना खाने का हुक्म मिले, तो चुपचाप खा जाना और घर जाकर सो जाना। तुम्हें कुछ दस्त-वस्त लगेंगे, लेकिन जान बच जायेगी।’
वह शुक्रिया करके चला गया।
घी पीकर और चूना लेकर वह बादशाह के पास पहुँचा- ‘हुजूर, चूना हाजिर है।’
अकबर ने कहा- ‘ले आये चूना? इसे यहीं खा जाओ।’
‘जो हुक्म हुजूर’ कहकर वह चूना खा गया। अकबर ने हुक्म दिया- ‘अब जाओ।’ कोर्निश करके वह चला गया।
अगले दिन वह फिर पान लेकर हाजिर हुआ। उसे देखकर अकबर को आश्चर्य हुआ- ‘क्या तुम मरे नहीं?’
‘आपके फजल से जिन्दा हूँ, हुजूर!’
‘तुम बच कैसे गये? मैंने तो तुम्हें एक पाव चूना अपने सामने खिलाया था।’
‘हुजूर, आपके पास आने से पहले मैंने गाय का एक सेर घी पी लिया था।’
‘यह तरकीब तुम्हें किसने बतायी? और तुम्हें कैसे पता था कि मैं चूना खाने का हुक्म दूँगा?’
‘मुझे नहीं पता था, लेकिन पान वाला लाला समझ गया था। उसी ने मुझे यह तरकीब बतायी थी, हुजूर।’
अब तो अकबर चौंका। बोला- ‘पूरी बात बताओ कि तुम दोनों के बीच क्या बात हुई?’
तब उस नौकर ने वह बातचीत कह सुनायी जो उसके और वीरबल के बीच हुई थी। यह सुनकर अकबर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। बोला- ‘यह पानवाला लाला तो बहुत बुद्धिमान मालूम होता है। तुम उसको हमारे पास लेकर आना। हम उसे अपना दोस्त बनायेंगे।’
तब वह नौकर वीरबल को लेकर अकबर के पास गया और इस प्रकार अकबर और वीरबल में मित्रता हुई।
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